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जल्द लौट आऊँगी !

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फिर से आज कुछ लिखने का मन किया , फिर से किताबो में दिखने का मन किया । औरो पे लिख लिख कर मैं थक गई यारो , आज फिर से खुद पे कुछ लिखने का मन किया । थम गई हु इस मझदार में । ठहरी हु भरे बाजार में। रखती नहीं ऐतबार में। रहती नहीं अब दीदार में।   उलझी हु , सुलज़ नहीं पा रही । बहकी हु , संभल नहीं पा रही। बिखरी हु , सिमट नहीं पा रही। सहमी हु , चहक नहीं पा रही। रहती हु खुद में , दुनिया का होश नहीं। नशे में हु , फिर भी मदहोश नहीं। कुछ कहती नहीं , फिर भी खामोश नहीं। गुनाह भी नहीं किये , फिर भी निर्दोष नहीं। शायद उभर जाऊंगी , शायद संभल जाऊंगी। शायद कभी मैं , फिर से मुस्कुराऊंगी। शायद फिर से चहकुंगी , फिर से गाऊंगी। खो गई हुँ मैं खुद से कही , जल्द लौट आऊँगी।