क्या तेरा चलना है..!!
दिन में सूरज निकला है , तो शाम को उसको ढालना है.. तेरे कदम डगमगाए तो संभलना , वरना क्या तेरा चलना है..!! रपट मिले राहों में तो , गिर कर भी तुझे संभलना है.. फिसल कर तू उठ न सका , तो क्या तेरा चलना है..!! मुह कोई मोड़ ले राहो में , तो तुझको आगे बढ़ना है.. वही इंतजार में रुक गया तू , तो क्या तेरा चलना है..!! वफादारो की भीड़ में , तुझे कुछ बेवफाओ से भी मिलना है.. थम गया उनकी रुसवाई से तू , तो क्या तेरा चलना है..!! कोई मिले न मिले जिंदगी में तुझे , अंत में खुदा से तुझे मिलने है.. उसकी चाहत में चल राहो पर , वरना क्या तेरा चलना है..!! रोड़े रूकावटो से डर मत पगले , इन्सान ऐसे ही बनना है.. इनसे गर घबराया तू , तो क्या तेरा चलना है..!!