ख़त मेरे अपनों के नाम !!

 

 
 
माँ मैं दूर नहीं तेरे पास हु ..
तेरी रूह का हर एक एहसास हु।।
तेरी ममता की छाया में मैं हु पली..
तेरा ही हिस्सा हु एहसास हु।।

तुझसे ही सिखा है दुनिया को जीना..
कैसे सारे गमो को हंस हंस कर पीना।।
तुझसे ही जानी है हर एक सच्चाई..
तुझसे ही बनी हु - मैं हु तेरी परछाई।।

पापा से कहना पलकों में हु मैं..
झपका कर देखे ख्वाबो में मिलूंगी।।
बेटी नहीं बेटा  हु उनका..
वो हँसते रहे मैं खिलखिलाती रहुँगी ।।

उन्ही से सिखा है सपनो को बुनन..
उन्ही के तो सपनों को अपना है जाना।।
उन्ही को तो कहती हु पहचान अपनी..
उन्ही को तो अपनों से अपना है माना।।

भाई से कहना तू संबल है सबका ..
तेरे ही भरोसे है , वो ममता का आँचल (माँ) ।।
तेरे ही सहारे है , वो सिख और समझाईश (पापा)।।
तू ही सहारा है उन दो दिलो का , जिन्हें मैं मेरे - उस घर छोड़ आई।।






 
 
 
 

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