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नव वर्ष की शुभकामनायें !!

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आते को सलाम , जाते को प्रणाम। २०१४ रहा थोड़ा खास - थोड़ा आम। नयी नयी उम्मीदें है , आँखों में आस है। आने वाला कल , बहुत ही पास है। कुछ खट्टा हुआ कुछ मीठा , कोई माना तो कोई रूठा। कुछ नमकीन हुआ कुछ तीखा , कोई सच्चा निकला तो कोई झूठा। सबको नमस्ते , सबको माफ़ करते है। चलो हँसते हँसते , नए वर्ष की शुरुआत करते है । नफा नुकसान , घाटा मुनाफा। कौन कितना दौड़ा , कितना हांफा। सबको नमस्ते , सबको सलाम  करते है। चलो हँसते हँसते , नए वर्ष की शुरुआत करते है। न सुख का हिसाब , न दुःख की कीमत याद रखना। पर अपनी खुशियो की झोली हमेशा साथ रखना। कल की परवाह में वक़्त न गवाना। मुस्कुराते रहना और दिल साफ़ रखना । नव वर्ष की शुभकामनायें !!

सपनो का प्यार !!

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तरसे है उसके दीदार को, जो सपनो में बसता है। मेरी हर बात पर वो, खिलखिला के हँसता है। उसकी मुस्कराहट पर, दिल हारने का मन करता है। आँखे खुलने पर, दिल उसे खोने से डरता है। सपनो का राजा है, महलो में रहता है। मैं उसकी रानी हु, सपनो में कहता है। नींद नहीं आये तो, दिल जुदाई क्यों सहता है। मिलने नहीं आये तो, दिल अश्को से रोता है। लोग कहते है, सपने सच नहीं होते। सुनते ही यह शब्द, दिल उमीदें क्यों खोता है। क्या सपनो का प्यार, कभी सच नहीं होता है ? क्या सच्चा प्यार, सिर्फ सपनो में ही होता है ? आँखों में उसके, बहुत प्यार है, लगता भी दिल से, बड़ा दिलदार है। बातों से दिल जीत लेता है, मुझे अपनी और, पलकों से खीच लेता है। उसकी हर आदत से वाकिफ हु, हर रोज़ जो मिलती हु। कहते है लोग, इश्क़ में नींदे उड़ जाती है। पर में तो उससे हमेशा, सपनो में मिलती हु। कभी लड़ता है, खफा होता है, कभी हक़ से गले लगता है। कभी छिप कर परेशान करता है, तो कभी न मिलकर सताता है। बड़ा नटखट है मेरा प्यार, बंद आँखों से नजर आता है। आँखे खुलते ही निर्मोही, औझल क्यों हो जाता है ? काश कभी मौका मिलता, मुझको भी कभी

नारी हु !!

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आबरू  का आँचल ओढ़ लेती हु, अंजानो से रिश्ता जोड़ लेती हु। ममता भी खुद से निचोड़ लेती हु, बड़ी आसानी से खुद को मैं, बिटिया से बहु की और मोड़ लेती हु। मुझे समझ नहीं आता अब, मौल ज़िंदगी का। अब आबरू रास्ते पे बिकती है। आँखों में हैवानियत दिखती है। अबला भरे बाजार चीखती है। ज़िंदगी हर बार पसीजती है। इस हैवानियत का मुझे अब, अंत नहीं दीखता। माँ ने पाला पोसा। बहन ने रक्षा के धागे बांधे। बीवी ने सुख दुःख में साथ दिया। बेटी ने अपने सुख दुःख है बांटे। फिर भी सोचती हु की, क्या अंदर का आदमी नहीं कचोटता? जन्म देने वाली की इज्जत से खेलने वालो, रक्षा की कसमो से बंधे रिश्ते से खेलने वालो , मासूम सी कली को मुरझाने पर मजबूर करने वालो, किस माटी से बने हो की, तुम्हारा दिल नहीं पसीजता? मासूम हु, अबला हु, नारी हु, शायद सच में बैचरी हु। ममता हु, आबरू  हु, आभारी हु, पर अपनों से ही हारी हु। माँ हु, बहन हु, बेटी भी हु, पर शायद अपनों की लाचारी हु। पर अब ना समझना अम्बे, अब भक्षक के लिए दुर्गा और काली हु। अब छु कर दिखा दो दरिंदो, मैं भी तुमसे ज्यादा अहंकारी हु। Respect woman

जल्द लौट आऊँगी !

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फिर से आज कुछ लिखने का मन किया , फिर से किताबो में दिखने का मन किया । औरो पे लिख लिख कर मैं थक गई यारो , आज फिर से खुद पे कुछ लिखने का मन किया । थम गई हु इस मझदार में । ठहरी हु भरे बाजार में। रखती नहीं ऐतबार में। रहती नहीं अब दीदार में।   उलझी हु , सुलज़ नहीं पा रही । बहकी हु , संभल नहीं पा रही। बिखरी हु , सिमट नहीं पा रही। सहमी हु , चहक नहीं पा रही। रहती हु खुद में , दुनिया का होश नहीं। नशे में हु , फिर भी मदहोश नहीं। कुछ कहती नहीं , फिर भी खामोश नहीं। गुनाह भी नहीं किये , फिर भी निर्दोष नहीं। शायद उभर जाऊंगी , शायद संभल जाऊंगी। शायद कभी मैं , फिर से मुस्कुराऊंगी। शायद फिर से चहकुंगी , फिर से गाऊंगी। खो गई हुँ मैं खुद से कही , जल्द लौट आऊँगी।

एक दफा मैं, खुद की होना चाहती हु ।।

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बहुत हंस ली मैं , कुछ देर रोना चाहती हु। बहुत थक चुकी हु , अब कुछ देर सोना चाहती हु।। उस अंचल से लिपट कर , रोना चाहती हु , उस गोद में सर रख, सोना चाहती हु। उस ममता को तरस रही हु हर घडी , कुछ देर खुद में मैं,   खोना चाहती हु।। सब अधुरा है लगता , नदिया भी सागर भी। में खुद को खुद में, भिगोना चाहती हु , बहुत थक गई हु , साहिल पर रहकर , दरिया की लहरों में खोना चाहती हु। हैं एक सागर, गमो   का भी अन्दर , मैं खुद को उसमे, डुबोना   चाहती हु। सब की हुई मैं   आज   और अब तक , एक दफा मैं, खुद की होना चाहती हु।।