नारी हु !!



आबरू  का आँचल ओढ़ लेती हु,
अंजानो से रिश्ता जोड़ लेती हु।
ममता भी खुद से निचोड़ लेती हु,
बड़ी आसानी से खुद को मैं,
बिटिया से बहु की और मोड़ लेती हु।

मुझे समझ नहीं आता अब, मौल ज़िंदगी का।

अब आबरू रास्ते पे बिकती है।
आँखों में हैवानियत दिखती है।
अबला भरे बाजार चीखती है।
ज़िंदगी हर बार पसीजती है।

इस हैवानियत का मुझे अब, अंत नहीं दीखता।

माँ ने पाला पोसा।
बहन ने रक्षा के धागे बांधे।
बीवी ने सुख दुःख में साथ दिया।
बेटी ने अपने सुख दुःख है बांटे।

फिर भी सोचती हु की, क्या अंदर का आदमी नहीं कचोटता?

जन्म देने वाली की इज्जत से खेलने वालो,
रक्षा की कसमो से बंधे रिश्ते से खेलने वालो ,
मासूम सी कली को मुरझाने पर मजबूर करने वालो,
किस माटी से बने हो की, तुम्हारा दिल नहीं पसीजता?

मासूम हु, अबला हु, नारी हु, शायद सच में बैचरी हु।
ममता हु, आबरू  हु, आभारी हु, पर अपनों से ही हारी हु।
माँ हु, बहन हु, बेटी भी हु, पर शायद अपनों की लाचारी हु।

पर अब ना समझना अम्बे,
अब भक्षक के लिए दुर्गा और काली हु।
अब छु कर दिखा दो दरिंदो,
मैं भी तुमसे ज्यादा अहंकारी हु।

Respect woman !!

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