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ना रे, कहा रोइ मैं?

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ना रे, कहा रोइ मैं? वो तो उबासी ली, तो आँसू आ गये। देख मुस्कुरा रही हु, देख घूमने जा रही हु। देख सबसे हंस के, फरमा रही हूँ।। अरे उन आँखों का, क्या दोश? वो जज़्बाती हैं ज़रा। भर आती हैं, किसी का जाना देखकर। पथरा जाती हैं, फिर ज़माना देखकर।। चलो मान लेते हैं, हाँ रो दिये थे हम। एक क्षण के लिये, खुद को खो दिये थे हम।। समेट लिया ना, संभल जायेगे। बस प्रॉमिस नहीं करते, की फिर से मुस्कुरायेगे।। $शिवि$

बधाई भरा गुलदस्ता !!!

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जब वो लाल सुर्ख जोड़े में सजी, मैं रंगीन लिफाफे में आया ख़त पढ़ रहा था। जब उसने बालो में मोगरे की वेणी डाली, तब मैं किताबों में सहेजे गुलाब चुने जा रहा था। जब उसने नज़ाकत से बिंदी लगाई, तब मैं हाथ पर गुदा टैटू देखे जा रहा था। जब वो पायल पहन रही थी, मैं उसको मना लेने वाला गाना गुनगुना रहा था। जब उसने आँखों में सुरमा लगाया, मैं आँख में कचरा सा गया कहकर मुस्कुरा रहा था। वो जब मुझे दूर से ही देख फुट पड़ी, मैं उसे बधाई भरा गुलदस्ता देकर हंसे जा रहा था। $शिवि$

चाहत कुछ पाने की, कुछ कर दिखाने की !!

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मुझे मान चाहिए सम्मान चाहिए, पैरो में धरती सर पर आसमान चाहिए, ज्यादा नहीं मांगती मैं रब से, मगर हौसलों भरी उड़ान चाहिए !! कहते सुना है की सब कुछ हासिल नहीं होता, कुछ खोना तो कुछ पाना पड़ता है, अपनों से रिश्ता हर हाल में निभाना पड़ता है , कभी खुद को रोते से हँसाना पड़ता है , तो कभी अकेले ही आंसू बहाना पड़ता है ! मुश्किल नहीं है चुनौतियों की पूर्ति, मुश्किल इस मन को मनाना पड़ता है, कभी सर को आदर में झुकना पड़ता है, तो कभी हाथ भी अपना उठाना पड़ता है ! मिश्रित मन की बातें है, खुद को खुद की ढाल बनाना पड़ता है, कभी खुद को खुद से हराना पड़ता है, रहने दे मन तू क्या जाने दिल की , उस मासूम को पत्थर बनाना पड़ता है ! भावुकता भी बुरी, कटुता भी बुरी , खुद को पल पल तपाना पड़ता है, बातों की मिश्री और आँखों की तपन को, कई बार मुस्कराहट से दबाना  पड़ता है ! जीवन गाड़ी है , और इसके कई पहलु, हर पहलु को गले लगाना पड़ता है, दुःख से दो दो हाथ हो, तो सुख से हाथ मिलाना पड़ता है, थको मत रुको मत यही तो है जीवन, खुद को खुद ही बनाना पड़ता है !!

नव वर्ष की शुभकामनायें !!

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आते को सलाम , जाते को प्रणाम। २०१४ रहा थोड़ा खास - थोड़ा आम। नयी नयी उम्मीदें है , आँखों में आस है। आने वाला कल , बहुत ही पास है। कुछ खट्टा हुआ कुछ मीठा , कोई माना तो कोई रूठा। कुछ नमकीन हुआ कुछ तीखा , कोई सच्चा निकला तो कोई झूठा। सबको नमस्ते , सबको माफ़ करते है। चलो हँसते हँसते , नए वर्ष की शुरुआत करते है । नफा नुकसान , घाटा मुनाफा। कौन कितना दौड़ा , कितना हांफा। सबको नमस्ते , सबको सलाम  करते है। चलो हँसते हँसते , नए वर्ष की शुरुआत करते है। न सुख का हिसाब , न दुःख की कीमत याद रखना। पर अपनी खुशियो की झोली हमेशा साथ रखना। कल की परवाह में वक़्त न गवाना। मुस्कुराते रहना और दिल साफ़ रखना । नव वर्ष की शुभकामनायें !!

सपनो का प्यार !!

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तरसे है उसके दीदार को, जो सपनो में बसता है। मेरी हर बात पर वो, खिलखिला के हँसता है। उसकी मुस्कराहट पर, दिल हारने का मन करता है। आँखे खुलने पर, दिल उसे खोने से डरता है। सपनो का राजा है, महलो में रहता है। मैं उसकी रानी हु, सपनो में कहता है। नींद नहीं आये तो, दिल जुदाई क्यों सहता है। मिलने नहीं आये तो, दिल अश्को से रोता है। लोग कहते है, सपने सच नहीं होते। सुनते ही यह शब्द, दिल उमीदें क्यों खोता है। क्या सपनो का प्यार, कभी सच नहीं होता है ? क्या सच्चा प्यार, सिर्फ सपनो में ही होता है ? आँखों में उसके, बहुत प्यार है, लगता भी दिल से, बड़ा दिलदार है। बातों से दिल जीत लेता है, मुझे अपनी और, पलकों से खीच लेता है। उसकी हर आदत से वाकिफ हु, हर रोज़ जो मिलती हु। कहते है लोग, इश्क़ में नींदे उड़ जाती है। पर में तो उससे हमेशा, सपनो में मिलती हु। कभी लड़ता है, खफा होता है, कभी हक़ से गले लगता है। कभी छिप कर परेशान करता है, तो कभी न मिलकर सताता है। बड़ा नटखट है मेरा प्यार, बंद आँखों से नजर आता है। आँखे खुलते ही निर्मोही, औझल क्यों हो जाता है ? काश कभी मौका मिलता, मुझको भी कभी

नारी हु !!

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आबरू  का आँचल ओढ़ लेती हु, अंजानो से रिश्ता जोड़ लेती हु। ममता भी खुद से निचोड़ लेती हु, बड़ी आसानी से खुद को मैं, बिटिया से बहु की और मोड़ लेती हु। मुझे समझ नहीं आता अब, मौल ज़िंदगी का। अब आबरू रास्ते पे बिकती है। आँखों में हैवानियत दिखती है। अबला भरे बाजार चीखती है। ज़िंदगी हर बार पसीजती है। इस हैवानियत का मुझे अब, अंत नहीं दीखता। माँ ने पाला पोसा। बहन ने रक्षा के धागे बांधे। बीवी ने सुख दुःख में साथ दिया। बेटी ने अपने सुख दुःख है बांटे। फिर भी सोचती हु की, क्या अंदर का आदमी नहीं कचोटता? जन्म देने वाली की इज्जत से खेलने वालो, रक्षा की कसमो से बंधे रिश्ते से खेलने वालो , मासूम सी कली को मुरझाने पर मजबूर करने वालो, किस माटी से बने हो की, तुम्हारा दिल नहीं पसीजता? मासूम हु, अबला हु, नारी हु, शायद सच में बैचरी हु। ममता हु, आबरू  हु, आभारी हु, पर अपनों से ही हारी हु। माँ हु, बहन हु, बेटी भी हु, पर शायद अपनों की लाचारी हु। पर अब ना समझना अम्बे, अब भक्षक के लिए दुर्गा और काली हु। अब छु कर दिखा दो दरिंदो, मैं भी तुमसे ज्यादा अहंकारी हु। Respect woman